मौजूदा समय में
भारतीय कानून के मुताबिक,
लड़कियों की शादी
की उम्र 18 साल
और लड़कों की
शादी की उम्र
21 साल है। ऐसा
इसलिए क्योंकि समाज
का एक बड़ा
तबका मानता है
कि लड़कियां जल्दी
मैच्योर हो जाती
हैं, इसलिए दुलहन
को दूल्हे से
कम उम्र की
होना चाहिए। साथ
ही यह भी
कहा जाता है
कि चूंकि हमारे
यहां पितृसत्तात्मक समाज
है, तो पति
के उम्र में
बड़े होने पर
पत्नी को उसकी
बात मानने पर
उसके आत्मसम्मान को
ठेस नहीं पहुंचती।
लेकिन तमाम सामाजिक
कार्यकर्ता और डॉक्टर
समय-समय पर
लड़कियों की शादी
की उम्र पर
पुनर्विचार की जरूरत
बताते रहते हैं।
इस बार बजट
में वित्त मंत्री
निर्मला सीतारमण ने भी
इस मसले पर
अपनी बात रखी।
बजट 2020-21 को संसद
में पेश करने
के दौरान वित्त
मंत्री निर्मला सीतारमण ने
एक टास्क फोर्स
बनाने का प्रस्ताव
दिया है, जो
लड़कियों की शादी
की उम्र पर
विचार करेगी और
छह महीने में
अपनी रिपोर्ट देगी।
वित्त मंत्री ने अपने
बजट भाषण में
कहा, ‘साल 1929 के
बाद शारदा अधिनियम
में संशोधन करते
हुए 1978 में महिलाओं
के विवाह की
आयु सीमा बढ़ाकर
15 से बढ़ाकर 18 साल
की गई थी।
जैसे- जैसे भारत
आगे बढ़ रहा
है, वैसे-वैसे
महिलाओं के लिए
शिक्षा और करियर
में आगे बढ़ने
के अवसर भी
बन रहे हैं।
महिला मृत्युदर में
कमी लाना और
पोषण के स्तरों
में सुधार लाना
जरूरी है। मां
बनने वाली लड़की
की उम्र से
जुड़े पूरे मुद्दे
को इस नजरिए
ये साथ देखना
जरूरी है। मैं
एक टास्क फोर्स
नियुक्त करने का
प्रस्ताव देती हूं,
जो छह महीने
में अपनी रिपोर्ट
देगी।’ इसके बाद
से इस बात
को लेकर चर्चा
तेज हो गई
है कि लड़की
की शादी की
उम्र कितनी होनी
चाहिए।
दोनों की समान उम्र के हैं कई फायदे
सेंटर फॉर सोशल
रिसर्च की डायरेक्टर
डॉक्टर रंजना कुमारी ने
लड़कियों की शादी
की उम्र पर
पुनर्विचार के लिए
कोर्ट में याचिका
डाली है। इस
मसले पर पर
बात करने पर
वह कहती हैं,
‘हम लोगों ने
कोर्ट में इस
बारे में याचिका
डाली थी, जिसकी
कॉपी हमने उनके
(वित्त मंत्री) पास भी
भेजी। हम लोगों
ने इस याचिका
में कहा है
कि लड़की की
शादी की उम्र
18 साल और लड़के
की उम्र 21 साल
रहने का कोई
कारण नहीं है।
कई लोग मानते
हैं कि लड़की
जल्दी मैच्योर हो
जाती है, जबकि
लड़का देर से
मैच्योर होता है।
लेकिन ये चीजें
वैज्ञानिक आधार पर
साबित नहीं हैं।
यह एक तरह
की सामाजिक धारणा
है। यह भी
जरूरी नहीं है
कि लड़की छोटी
ही हो। दुनियाभर
में ऐसे तमाम
विवाह हो रहे
हैं, जिनमें लड़कियां
बड़ी हैं। खासतौर
से पश्चिमी देशों
में तो 90 प्रतिशत
शादियों में लड़कियां
बड़ी होती हैं।
हमारे यहां भी
इन चीजों को
बदलना चाहिए। मगर
लड़के की उम्र
कम करने का
सवाल ही नहीं
है, तो हमारी
मांग यह है
कि दोनों की
उम्र 21 साल होनी
चाहिए। अगर दोनों
कमाने लायक हो
जाएंगे, तो आर्थिक
स्थिति भी अच्छी
होगी और अर्थव्यवस्था
भी। उम्र बढ़ने
से लड़की के
पास समय होगा
पूरी पढ़ाई करने
का। अमूमन 21 साल
तक बच्ची ग्रेजुएट
हो जाएगी, फिर
नौकरी करने के
अवसर भी मिलेंगे।
उम्र बढ़ जाएगी,
तो वह शिक्षित
और हेल्दी होंगी।'
वहीं लड़कियों के
स्वास्थ्य के नजरिए
से रंजना कहती
हैं, ‘लड़की की
शादी की उम्र
बढ़ाने का फायदा
यह भी होगा
कि बच्चों का
लालन-पालन कम
उम्र की लड़कियां
कर नहीं पाती
हैं और इस
वजह से हमारी
शिशु मृत्यु दर
ज्यादा है। अपरिपक्व
(इम्मैच्योर) शरीर से
बच्चा इतना मजबूत
नहीं पैदा होता।
तो नैचुरली बच्चे
की हेल्थ का
भी एक पहलू
है कि वह
स्वस्थ नहीं रहता
है।’
शादी के लिए 21 साल की उम्र सही
शादी के बाद जहां लड़की को अपने ससुराल और पति की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। वहीं एक बच्चे को जन्म देकर उसका पालन पोषण भी करना होता है। ऐसे में डॉक्टरों का मानना है कि लड़की के लिए 21 साल के बाद स्वस्थ रूप से गर्भ धारण करने की उम्र होती है। इस बारे में एससीआई हेल्थकेयर की डायरेक्टर और गाइनिकॉलजिस्ट डॉ. शिवानी सचदेव गौड़ कहती हैं, ‘पॉपुलेशन काउंसिल के एक सर्वे के मुताबिक 15 से 19 साल के बीच में 30 प्रतिशत लड़कियों की शादी हो जाती है। लेकिन मां बनने के लिए 20-21 साल के बाद की उम्र ही ठीक होती है, क्योंकि लड़कियों का पेल्विस 18 की उम्र के बाद ही पूरा विकसित होता है और 21 तक उसका पूरा विकास होता है। तो मां बनने के लिए कम से कम 22-23 साल की उम्र तो होनी चाहिए।’ शादी और हार्मोनल विकास पर वह कहती हैं, ’18-19 तक हार्मोंस का विकास तो हो जाता है, लेकिन कई लड़कियां शादी के तुरंत बाद मां भी तो बन जाती हैं, जिसके लिए उम्र बिल्कुल ठीक नहीं है।’ क्या 18-19 साल की उम्र में मां बनने से लड़कियों की सेहत पर कोई प्रभाव पड़ता है? इसके जवाब में वह कहती हैं, ‘हां, इससे सबसे पहले तो काफी गंभीर हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होती है, जिसे प्री एक्लेम्सिया कहते हैं। यह कई बार जान के लिए खतरा भी बन जाती है। ये 18 साल की उम्र में सबसे ज्यादा होता है। इसके अलावा बच्चे भी कमजोर होते हैं, जिनकी ग्रोथ नहीं होती है। इन्हें ग्रोथ रिटार्टेड बच्चे कहा जाता है। इसके अलावा एंटी पार्टम हैमरेज भी हो सकता है जिसमें यूटरस से ब्लीडिंग होती है। यह भी इस उम्र में कॉमन है।’ Read full article
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